हरियाणा की औद्योगिक नगरी में शिक्षा व्यवस्था फिर सवालों के घेरे में है। दयालपुर स्थित राजकीय बाल वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय का परीक्षा परिणाम मात्र 33 फीसदी रहा है। शैक्षणिक सत्र 2024-25 में बारहवीं कक्षा में सिर्फ छह विद्यार्थियों ने परीक्षा दी, जिनमें से केवल दो ही पास हो पाए। दो विद्यार्थी फेल हुए और दो की कंपार्टमेंट आई है।
37 लाख का खर्च, फिर भी नतीजा फेल
विद्यालय में 6 प्राध्यापक कार्यरत हैं, जिनकी सालाना वेतन लागत 37 लाख 32 हजार रुपये है।
इसके बावजूद यह स्टाफ मिलकर छह छात्रों को भी सफल नहीं कर पाया, जो कि शिक्षा विभाग की कार्यप्रणाली पर बड़ा प्रश्नचिन्ह खड़ा करता है।
सिर्फ कला संकाय, छात्रों की संख्या बेहद कम
इस स्कूल में केवल कला संकाय उपलब्ध है, और शैक्षणिक सत्र 2024-25 में सिर्फ छह विद्यार्थियों ने दाखिला लिया। स्कूल में हिंदी, अंग्रेजी, राजनीति विज्ञान, अर्थशास्त्र, इतिहास और भूगोल के लिए सभी विषय अध्यापक मौजूद हैं।
छह अध्यापक मिलकर भी नहीं पढ़ा पाए छह बच्चे
गांववासियों का कहना है कि यह सरकारी स्कूलों की बदहाल व्यवस्था का उदाहरण है। लाखों रुपये खर्च के बावजूद सरकारी स्कूलों में परिणाम लगातार गिरते जा रहे हैं, जबकि प्राइवेट स्कूल महंगी फीस लेकर बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं।
कुछ ग्रामीणों का यह भी आरोप है कि शिक्षा विभाग और निजी स्कूलों की मिलीभगत से सरकारी शिक्षा का स्तर गिराया जा रहा है ताकि लोग मजबूरी में निजी स्कूलों की ओर रुख करें।
प्रशासनिक लापरवाही भी उजागर
जिला शिक्षा अधिकारी और खंड शिक्षा अधिकारी कभी भी स्कूल का निरीक्षण नहीं करते।
स्थानीय लोगों का कहना है कि यदि समय-समय पर स्कूलों की सख्त जांच और निगरानी होती, तो अध्यापक अधिक जिम्मेदारी से कार्य करते।
दयालपुर जैसे गांव, जहां से चौधरी सुमेर सिंह बीसला और चौधरी राजेंद्र सिंह बींसला जैसे नेता विधायक रह चुके हैं, वहां शिक्षा की यह हालत चिंताजनक है।
ग्रामीण बीर सिंह ने कहा:
“स्कूल का परीक्षा परिणाम बेहद चिंताजनक है। 33 फीसदी से भी कम परिणाम होना दर्शाता है कि शिक्षा विभाग को स्कूलों पर ध्यान देने की सख्त जरूरत है। ऐसे हालात बच्चों के भविष्य को खतरे में डाल रहे हैं।”
प्रधानाचार्य का स्पष्टीकरण
प्रधानाचार्य अंजू जुनेजा ने कहा कि छात्रों के पेपर अच्छे हुए थे, लेकिन फिर भी वे फेल हो गए।
“हमने कंपार्टमेंट और फेल हुए छात्रों के लिए पुनः जांच के फार्म भरवाए हैं।
स्कूल गांव से दूर है, बच्चे आते ही नहीं हैं, तो शिक्षक कैसे पढ़ाएं?”
शिक्षा विभाग का जवाब
जिला शिक्षा अधिकारी अजीत सिंह ने बताया:
“स्कूल के परिणाम को लेकर प्रधानाचार्य से स्पष्टीकरण मांगा गया है। निदेशालय ने परीक्षा परिणामों की समीक्षा के लिए मीटिंग की है।
अब बच्चों की पढ़ाई की मनोस्थिति को समझने के लिए कार्यशाला आयोजित की जाएगी।”
दयालपुर का मामला हरियाणा के सरकारी स्कूलों की सच्चाई को उजागर करता है।
सरकार को केवल संसाधन मुहैया कराने तक सीमित न रहकर परिणाम आधारित निगरानी और जवाबदेही तय करनी होगी, तभी सरकारी शिक्षा में भरोसा लौटेगा।