𝐇𝐚𝐫𝐲𝐚𝐧𝐚 𝐃𝐞𝐬𝐤 : बेटे-बेटियों के लिए टिकट चाहते हैं कई बड़े नेता, हरियाणा में BJP के लिए टिकट आवंटन बड़ी चुनौती
बेटे-बेटियों के लिए टिकट की चाह ! हरियाणा में नहीं चलेगा BJP का 'एक परिवार एक टिकट' फॉर्मूला !
हरियाणा विधानसभा चुनावों में भाजपा की टिकटों का सही गलत वितरण और बड़े नेताओं की आपसी कलह का सीधा असर सत्ता के नजदीक दूर आने जाने पर पड़ेगा.. जैसे 2019 में हुआ। नतीजा भाजपा को पूरे साढ़े चार साल जजपा की हनक के साथ नहीं बल्कि नीचे सरकार चलानी पड़ी। कई अहम मंत्रालय देने पड़े, मन मारकर कुछ निर्णय भी मानने पड़े।
पिछली बार भी भाजपा ने बड़े नेताओं की आपसी खींचतान पसंद नापसंद के चलते कई दमदार दावेदारों को टिकट नहीं दी। उनमें से पांच बागी होकर लड़े, पांचों निर्दलीय जीते।
जानकारी के अनुसार हरियाणा भाजपा चुनाव समिति की बैठक शुक्रवार को शुरू हुई है। सुबह 9 बजे शुरू हुई मीटिंग दोपहर तक चलेगी। शुक्रवार को 8 लोकसभा के अंतर्गत आने वाली 72 विधानसभा सीटों पर मंथन किया जा रह है।
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हरियाणा, डिजिटल डेक्स।। पार्टी के सूत्रों ने कहा कि इसके कुछ वरिष्ठ नेताओं ने 'एक परिवार एक टिकट' फॉर्मूले को इस बार टालने के लिए टॉप लीडरशिप से संपर्क किया है। ये वो नेता हैं, जो अपने परिवार के सदस्यों के लिए विधानसभा चुनाव का टिकट मांग रहे थे। कुछ नेता क्षेत्र में अपनी ताकत दिखा रहे हैं।
गुरुग्राम से राव इंद्रजीत सांसद हैं. वह अपनी बेटी आरती को चुनाव लड़वाना चाहते हैं। इसी तरह, फरीदाबाद से कृष्णपाल गुर्ज्जर सांसद हैं और वह अपने बेटे के लिए टिकट मांग रहे हैं। कुलदीप बिश्नोई के अपने बेटे के लिए दोबारा टिकट चाह रहे हैं। भव्य बिश्नोई हिसार के आदमपुर से विधायक हैं।
गुरुग्राम से राव इंद्रजीत सांसद हैं. वह अपनी बेटी आरती को चुनाव लड़वाना चाहते हैं। इसी तरह, फरीदाबाद से कृष्णपाल गुर्ज्जर सांसद हैं और वह अपने बेटे के लिए टिकट मांग रहे हैं। कुलदीप बिश्नोई के अपने बेटे के लिए दोबारा टिकट चाह रहे हैं। भव्य बिश्नोई हिसार के आदमपुर से विधायक हैं।
इसके अलावा, किरण चौधरी अपने बेटी श्रुति चौधरी को तोशाम से चुनाव लड़वाना चाहती हैं। उन्हें भाजपा राज्यसभा भेज रही है। इसके अलावा, कुरुक्षेत्र से भाजपा सांसद नवीन जिंदल की अपनी माता सावित्री जिंदल भी चुनाव लड़ना चाहती हैं। वह पहले कांग्रेस सरकार में मंत्री भी रही थीं।
हरियाणा विधानसभा चुनावों में भाजपा की टिकटों का सही गलत वितरण और बड़े नेताओं की आपसी कलह का सीधा असर सत्ता के नजदीक दूर आने जाने पर पड़ेगा.. जैसे 2019 में हुआ। नतीजा भाजपा को पूरे साढ़े चार साल जजपा की हनक के साथ नहीं बल्कि नीचे सरकार चलानी पड़ी। कई अहम मंत्रालय देने पड़े, मन मारकर कुछ निर्णय भी मानने पड़े।
पिछली बार भी भाजपा ने बड़े नेताओं की आपसी खींचतान पसंद नापसंद के चलते कई दमदार दावेदारों को टिकट नहीं दी। उनमें से पांच बागी होकर लड़े, पांचों निर्दलीय जीते।
सरकार चलाने के लिए जजपा के साथ साथ पार्टी को इनका साथ भी लेना पड़ा। रेवाड़ी में रणधीर कापड़ीवास और बादशाहपुर से राव नरवीर की जगह पार्टी ने जिन्हें लड़ाया वो हारे। जबकि इन दोनों की जीत के पक्के आसार थे।
इस बार भाजपा पहले ही बैकफुट पर नजर आ रही है। अगर फिर वही गलती दोहराई गई तो मुश्किलें और बढ़ेंगी। इस लोकसभा चुनाव में भी संघ की दूरी आपसी कलह और टिकटों का चयन भाजपा को भारी पड़ा है।
इस बार भाजपा पहले ही बैकफुट पर नजर आ रही है। अगर फिर वही गलती दोहराई गई तो मुश्किलें और बढ़ेंगी। इस लोकसभा चुनाव में भी संघ की दूरी आपसी कलह और टिकटों का चयन भाजपा को भारी पड़ा है।
संघ से तो मान मनौव्वल के बाद दूरी कम हुई है। टिकटों के वितरण में संघ का दखल बढ़ता दिख रहा है। लेकिन पार्टी के बड़े नेताओं की पसंद नापसंद और हिसाब चुकता करने वाली शतरंजी चालें चुनाव में भाजपा की चूलें ही न हिला दें।
इससे पहले, गुरुग्राम और फरीदाबाद दो लोकसभा के अंतर्गत आने वाली 18 विधानसभा सीटों पर टिकट देने को लेकर मंथन किया गया था।