चंडीगढ़ : पंजाब हरियाणा हाई कोर्ट ने बड़ा आदेश जारी कर दिया है। जिसके बाद कई बड़े अधिकारियों की मुश्किलें बढ़ सकती है।
दरअसल पंजाब हरियाणा हाई कोर्ट ने प्रदेश में हुए वृद्धा पेंशन घोटाले की जांच सीबीआई को सौंप दी है।
यह घोटाला हरियाणा की पूर्व हुड्डा सरकार के कार्यकाल के दौरान चर्चा में आया था। इस केस में हरियाणा एंटी करप्शन ब्यूरो ने भी कार्रवाई की थी।
इसके बाद अब हाई कोर्ट ने शाहबाद निवासी राकेश बैंस की याचिका पर यह मामला सीबीआई के सुपुर्द कर दिया।
हाई कोर्ट के आदेशों पर सीबीआई के जांच शुरू करते ही प्रदेश के कई आईएएस और एचसीएस अधिकारी निशाने पर आ जाएंगे।
क्या था पेंशन घोटाले का पूरा मामला?
याचिकाकर्ता के वकील प्रदीप रापड़िया ने बताया कि हरियाणा में पेंशन देने के मामले में घोटाला हुआ था।
उन्होंने जानकारी देते हुए बताया कि वृद्धावस्था पेंशन के नाम पर 40 साल से कम के उम्र के लोगों को भी इस पेंशन का पात्र बनाया गया था।
उनका आरोप था कि मृत लोगों को भी वृद्धावस्था पेंशन दी जा रही थी। इसके साथ ही कई लोग सरकारी नौकरी से सेवानिवृत्त होने के बाद भी वृद्धावस्था पेंशन भी पा रहे थे।
बहुत से मामले ऐसे थे जिसमें संबंधित व्यक्ति दोहरी पेंशन ले रहे थे। उन्होंने बताया कि इस घोटाले के मामले में याचिकाकर्ता राकेश बैंस ने सीबीआई, ईडी और हरियाणा सरकार को पत्र लिखा था।
कोर्ट ने अब तक की कार्रवाई की जानकारी मांगी?
याचिकाकर्ता रापड़िया ने बताया कि साल 2011 में हुड्डा सरकार के वक्त कैग की रिपोर्ट में यह बात सामने आई थी कि यह बहुत बड़ा घोटाला है।
इस मामले में कैग की रिपोर्ट पर भी उचित कार्रवाई नहीं हुई। इसके बाद कैग की रिपोर्ट को सरकार को भेजा। बाद में मामले में सीबीआई जांच के लिए हाईकोर्ट में याचिका लगाई।
फरवरी में हुई सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट ने इस मामले में एसीबी और समाज कल्याण विभाग के प्रधान सचिव से 2011 से अभी तक हुई कार्रवाई की जानकारी मांगी थी।
इसके साथ यह भी जानकारी मांगी गई थी कि जिस दौरान ये घोटाला हुआ उस दौरान कौन-कौन से आईएएस अधिकारी संबंधित विभागों में तैनात थे, जिनकी इस मामले में कार्रवाई करने की जिम्मेदारी बनती थी।
कई अफसरों पर हो सकता है ऐक्शन
सुनवाई के दौरान एंटी करप्शन ब्यूरो और सोशल वेलफेयर डिपार्टमेंट की ओर से इस मामले में एफिडेविट कोर्ट में पेश किया गया।
एफिडेविट में जानकारी सामने आई है कि अभी भी सात करोड़ से अधिक की रिकवरी किया जाना बाकी है। जबकि अभी तक मात्र चार करोड़ रुपये ही रिकवर किए गए हैं।
याची के मुताबिक उन्होंने एफिडेविट में जानकारी दी है लेकिन यह घोटाला इससे भी ज्यादा का है। इस दौरान करीब 10 से 15 आईएएस अधिकारी इन विभागों में तैनात थे जिनकी यह जिम्मेदारी बनती थी।
इसके साथ ही उन्होंने यह भी जानकारी दी कि इस मामले में एक भी एफआईआर भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत दर्ज नहीं हुई।
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