अब किस बात पर झगड़ा हुआ?
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद केजरीवाल सरकार के मंत्री सौरभ भारद्वाज ने अपने विभाग के सचिव को बदल दिया। दिल्ली सरकार का सेवा विभाग सौरभ भारद्वाज के पास है। उन्होंने अपने इसी विभाग के सचिव आशीष मोरे को पद से हटाया।
मोरे की जगह अनिल कुमार
आशीष मोरे की जगह पर अनिल कुमार सिंह को सेवा विभाग का नया सचिव बनाया गया। अनिल कुमार सिंह 1995 बैच के IAS अधिकारी हैं। वो दिल्ली जल बोर्ड के सीईओ भी रह चुके हैं।
किस आधार पर एलजी ऑफिस ने ट्रांसफर रोका?
दिल्ली सरकार द्वारा किए गए इस पहले ही ट्रांसफर के बाद टकराव शुरू हो गया। आशीष मोरे के ट्रांसफर को एलजी वीके सक्सेना के दफ्तर की ओर से अवैध बताया गया। आजतक के मुताबिक दिल्ली के एलजी सचिवालय और सेवा विभाग के सूत्रों का दावा है कि सेवा विभाग के सचिव का ट्रांसफर अवैध, मनमाना और निर्धारित दिशानिर्देशों का पालन किए बिना किया गया है।
अधिकारी का तबादला कार्यकाल पूरा होने से पहले ऐसे नहीं होता!
इन सूत्रों के मुताबिक एक अधिकारी का तबादला कार्यकाल पूरा होने से पहले केवल सिविल सेवा बोर्ड द्वारा ही किया जा सकता है, जिसके चीफ दिल्ली सरकार के मुख्य सचिव होते हैं। साथ ही अन्य दो वरिष्ठ नौकरशाह इस बोर्ड के सदस्य होते हैं।
सूत्रों का कहना है कि सचिव सेवा आशीष मोरे के ट्रांसफर में इस प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया। यानी सिविल सेवा बोर्ड द्वारा ये फैसला नहीं लिया गया। दावा ये भी किया गया है कि फैसले की आधिकारिक कॉपी आने से पहले मंत्री सौरभ भारद्वाज का आदेश आ गया।
लंबे समय से चला आ रहा विवाद
- केंद्र बनाम दिल्ली विवाद 2018 से सुप्रीम कोर्ट में है। कोर्ट ने 4 जुलाई 2018 को इस पर फैसला सुनाया था। लेकिन तब कोर्ट ने सर्विसेज यानी अधिकारियों पर नियंत्रण जैसे कुछ मुद्दों को आगे की सुनवाई के लिए छोड़ दिया था।
- 4 फरवरी 2019 को इस मुद्दे पर 2 जजों की बेंच ने फैसला दिया था। लेकिन दोनों जजों, जस्टिस ए के सीकरी और जस्टिस अशोक भूषण के फैसले अलग अलग थे।
- जस्टिस ए के सीकरी ने माना था कि दिल्ली सरकार को अपने यहां काम कर रहे अफसरों पर नियंत्रण मिलना चाहिए। हालांकि, उन्होंने कहा था कि जॉइंट सेक्रेट्री या उससे ऊपर के अधिकारियों पर केंद्र सरकार का नियंत्रण रहेगा। उनकी ट्रांसफर-पोस्टिंग उपराज्यपाल करेंगे। इससे नीचे के अधिकारियों को नियंत्रण करने का अधिकार दिल्ली सरकार के पास होगा।
- जस्टिस अशोक भूषण ने अपने फैसले में कहा था- दिल्ली केंद्रशासित राज्य है, ऐसे में केंद्र से भेजे गए अधिकारियों पर दिल्ली सरकार को नियंत्रण नहीं मिल सकता।- इसके बाद मामला तीन जजों की बेंच को भेज दिया गया था।
- इसके बाद केंद्र ने 2021 में GNCTD अधनियम में संसोधन किया था। GNCTD अधिनियम में किए गए संशोधन में कहा गया था, ‘राज्य की विधानसभा द्वारा बनाए गए किसी भी कानून में सरकार का मतलब उपराज्यपाल होगा।’ इसी वाक्य पर मूल रूप से दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार को आपत्ति थी। इसी को आम आदमी पार्टी ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।
5 जजों की बेंच ने सुनाया फैसला
सुप्रीम कोर्ट में 5 जजों की बेंच ने सर्वसम्मति से फैसला सुनाते हुए कहा, ''एलजी के पास दिल्ली से जुड़े सभी मुद्दों पर व्यापक प्रशासनिक अधिकार नहीं हो सकते। एलजी की शक्तियां उन्हें दिल्ली विधानसभा और निर्वाचित सरकार की विधायी शक्तियों में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं देती।''
'अधिकारियों की तैनाती और तबादले का अधिकार दिल्ली सरकार के पास होगा।'
'चुनी हुई सरकार के पास प्रशासनिक सेवा का अधिकार होना चाहिए।'
'उपराज्यपाल को सरकार की सलाह माननी होगी।'
'पुलिस, पब्लिक आर्डर और लैंड का अधिकार केंद्र के पास रहेगा।’
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