नई दिल्ली: दिल्ली में हर साल प्रदूषण बढ़ता ही जा है. एक रिपोर्ट के मुताबिक़ दिल्ली की हवा वहाँ रहने लायक़ नहीं है. ऐसे में सरकार को बड़ा कदम उठाने की ज़रूरत है.
प्रदूषण की समस्या से निजात दिलाने के लिए दिल्ली सरकार की तरफ से अक्टूबर से फरवरी तक डीजल से चलने वाले बाहरी वाहनों पर रोक लगा दी गई है.
सरकार के इस फैसले से ट्रांसपोर्टर्स और व्यापारी ना खुश नजर आ रहे हैं. ट्रांसपोर्टर्स का करोड़ों का नुकसान दिल्ली गुड्स ट्रांसपोर्ट ऑर्गेनाइजेशन के अध्यक्ष राजेंद्र कपूर की माने तो दिल्ली में रोजाना डेढ़ लाख डीजल वाहन देश के अलग-अलग राज्यों से दिल्ली में आते हैं. जिनमें से तकरीबन 90 हजार के आसपास वाहन ईस्टर्न पेरिफेरल के जरिए बाहर ही रहते हैं और लगभग 50 से 60 हजार ऐसे वाहन हैं जो दिल्ली में एसेंशियल और नॉन एसेंशियल गुड्स को लेकर के दिल्ली में आते हैं. अगर इनको बंद किया गया तो उनके कारोबार पर काफी असर पड़ेगा.
राजेंद्र कपूर की माने सरकार के इस फैसले से लगभग करोड़ों रुपए का कारोबार पर असर पड़ेगा. इसके साथ ही ट्रांसपोर्ट व्यापार से जुड़े मजदूर वर्ग बेरोजगार हो जाएंगे. ट्रांसपोर्ट ही बड़ा कारण नहीं ट्रांसपोर्टरों ने सवाल खड़े करते हुए कहा कि सरकार को प्रदूषण का कारण सिर्फ डीजल से चलने वाले वाहन ही नज़र आते हैं, जबकि इसका सबसे बड़ा कारण कंस्ट्रक्शन और दिल्ली के तमाम इलाकों में चल रही इंडस्ट्री हैं. लेकिन सरकार उस पर कोई लगाम नहीं लगाती क्योंकि एक बड़ा वोट बैंक है.
ट्रांसपोर्टरों ने उपराज्यपाल को लिखा पत्र
दिल्ली को ट्रांसपोर्ट ऑर्गेनाइजेशन की तरफ से इस पूरे मामले पर उपराज्यपाल को पत्र भी लिखा गया है और यह मांग की गई है कि सरकार और उपराज्यपाल इस पूरे मामले को संज्ञान में लेते हुए विशेष अधिकारियों की एक टीम से विचार विमर्श करें ताकि इस फैसले को वापस किया जा सके.
CAIT ने ट्रांसपोर्टर का किया समर्थन
हालांकि ट्रांसपोर्टर्स पर लिए गए दिल्ली सरकार के इस फैसले पर CAIT भी मैदान में उतर गई है. कंसंट्रेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स के महामंत्री प्रवीण खंडेलवाल ने इस पूरे मामले पर 29 जून को अलग-अलग व्यापार संगठन के लोगों के साथ बैठक बुलाई है. प्रवीण खंडेलवाल के मुताबिक, पर्यावरण को लेकर कि यह फैसला सही है लेकिन ऐसा नहीं होना चाहिए कि व्यापारियों पर गहरा असर करे.
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