SC-ST एक्ट के तहत ‘वारंट ऑफ अरेस्ट’ पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई रोक, बिहार सरकार से मांगा जवाब



नई दिल्ली. SC-ST एक्ट के तहतवारंट ऑफ अरेस्टपर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई रोक लगा दी है. साथ कोर्ट ने बिहार सरकार से जबाव माँगा है. 

मामला बिहार के पूर्वी चम्पारण, मोतिहारी के चर्चित केस का है जहां गिरफ्तारी पर रोक का अंतरिम आदेश जस्टिस अजय रस्तोगी तथा जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी की पीठ ने आरोपी के वकील आशीष कुमार सिन्हा के तर्कों से सहमति जताते हुए मामले के एक आरोपी नयन सिंह की याचिका पर दी है और बिहार सरकार को चार सप्ताह में अपना जवाब दाखिल करने को कहा है. 

ऐसा पहली बार हुआ है कि एससी- एसटी एक्ट में पटना हाई कोर्ट से दो बार अग्रिम जमानत याचिका खारिज होने के बाद वारंट ऑफ अरेस्ट के आदेश जाने के बाद भी अरेस्ट पर रोक का ऑर्डर माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा आया हो.

पटना हाई कोर्ट ने 2020 में पहला तथा 2021में दूसरा अग्रिम जमानत याचिका खारिज करते हुए निचली अदालत को 10 दिन में स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करने को कहा था और उसके बाद 25 नवम्बर 2021 को एससी एसटी स्पेशल कोर्ट, मोतिहारी ने वॉरंट जारी कर दिया था परन्तु आज माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने आरोपी की गिरफ्तारी पर रोक लगा दी.

सुनवाई के दौरान आरोपी के वकील आशीष कुमार सिन्हा ने तर्क रखा कि कोर्ट एससी- एसटी एक्ट के तहत आरोपी के खिलाफ यदि प्रथम दृष्टया केस नहीं बन रहा है या एफआईआर एक षड्यंत्र का हिस्सा जो कि पूर्णतः गलत और फैब्रिकेटेड डॉक्यूमेंट्स के आधार पर ज्ञात प्रतीत होता (फर्दर इन्वेस्टिगेशन के आधार पर) हो तो अदालतें ऐसे आरोपी को अग्रिम जमानत दे सकती हैं .

2018 में आई "डॉ. काशीनाथ महाजन" के जजमेंट के इस ऑपरेशनल रेश्यो को सुप्रीम कोर्ट के 2019 और 2020 में आई "यूनियन ऑफ इंडिया वर्सेज स्टेट ऑफ महाराष्ट्र" और "पृथ्वी राज चौहान" के आदेश के जरिए सुप्रीम कोर्ट के ही दो अलग - अलग खंडपीठ ने एससी एसटी एक्ट के धारा 18A के अनुसार अग्रिम जमानत पर पूर्णतः रोक को भी न्यायालय द्वारा विचारणीय करार दिया है. 

एफआईआर के तहत एससी एसटी एक्ट के अलावा आईपीसी की धारा 341, 323, 324, 307, 379 तथा 504 भी सम्मिलित है.

इसके पहले भी 2018 में बिहार के चर्चित निखिल प्रियदर्शी (आदिवासी लड़की रेपकांड) मामले में भी अधिवक्ता आशीष कुमार सिन्हा ने एससी एसटी एक्ट में अध्यादेश के बाद भी एक आरोपी मृणाल किशोर और कांग्रेस नेता ब्रजेश पाण्डे की याचिका में अपने तर्कों से अग्रिम जमानत कराई थी. 

यह मामला पीड़ित लड़की के आदिवासी होने के कारण आईपीसी के साथ एससी-एसटी एक्ट के तहत दर्ज किया गया था.

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